मदरहुड विश्वविद्यालय विधि संकाय के द्वारा भारतीय संविधान में प्रदत्त मानवधिकारों पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम की शुरूआत मदरहुड विश्वविद्यालय रूड़की के कुलपति प्रो० (डॉ०) नरेन्द्र शर्मा ने दीप प्रज्वलित करके कि, उन्होंने इस अवसर पर कहा की भारत के संविधान में मानवधिकारों को मूलअधिकार के रूप में सभी व्यक्तियों को प्रदान किया गया है। जो एक गरिमा पूर्ण जीवन जीने और सुरक्षित जीवन के लिए आवश्यक है। पूरे विश्व में किसी भी देश ने अपने संविधान को इतना व्यापक स्वरूप प्रदान नहीं किया जितना की भारतीय के संविधान निर्माताओं द्वारा इसे दिया गया है।

मदरहुड विश्वविद्यालय रूड़की के विधि संकाय अधिष्ठाता प्रो० (डॉ०) जे०एस०पी० श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत और अपने उद्बोधन में कहा की मानव अधिकार वर्तमान परिदृश्य में जितने व्यापक स्वरूप में उपलब्ध हैं, उतने प्रभावशाली रूप से कार्यान्वयन के लिए भारतीय संस्थाएं कार्य कर रही है साथ ही साथ भारतीय न्यायालयों द्वारा न्यायिक सक्रियता के द्वारा इसे सुरक्षित व प्रभावी बनाया जा रहा है जितना कि अपेक्षित है। इस लिए हम सभी की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि समाज में मानवधिकार को प्रभावी रूप से व संरक्षित किया जाएं जिसके लिए हमें इन अधिकारो के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना होगा।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में पधारे प्रोफेसर (डॉ०) जयशंकर सिंह पूर्व अधिवक्ता विधि संकाय इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज ने इस कार्यक्रम के आयोजको और विधि संकाय के समस्त सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि मानवाधिकार प्रकृति के द्वारा दिए गए अधिकार है जो न कम किये जा सकते और न ही किसी को हस्तांतरित किये जा सकते है। जैसे कि सूर्य का उदय होना और अस्त होना प्रकृति के अनुसार है और इसका हम बिना किसी बाध्यता के उपयोग करते हैं यही प्रकृति के द्वारा प्रदत्त अधिकार है। प्रकृति ने हम सबको समान बनाया है विभेद राज्य एवं समाज की कृति है। भारतीय संविधान में भी जो अधिकार मूल अधिकार के रूप में दिए गए हैं वह परिवर्तनीय हैं इन अधिकारों के लिए सर्वप्रथम मोतीलाल नेहरू समिति द्वारा 1928 में ब्रिटिश संसद से मांग की गई थी। उस समय इन अधिकारों की संख्या 20 थी विश्व के सभी सभ्य राष्ट्रों में मूल अधिकार दिए गए है जिन्हें अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जब व्यक्ति के ऊपर बडे दायित्व आ जाते हैं तो वह अधिकारों की माग करने की अपनी स्वतंत्रता को खो देता है

व्यक्ति को मिले मानवाधिकरों के चार प्रमुख दुश्मन होते है। पहला परिवार फिर समाज उसके बाद राज्य और अंत में धार्मिक संस्थाएं। ये सभी व्यक्ति के मानव अधिकार को व्यापक रूप से प्रभावित करते है। सतयुग से लेकर वर्तमान तक ऐसी कोई भी घटना हमें दिखाई नही देती जो कि यह बताती हो कि जहां पर पूरी तरह से प्राकृतिक अधिकारो को लागू नही किया गया हो।

मूल अधिकार को हम दो भागों में बांट सकते हैं पहले व्यक्तिगत अधिकार और दूसरा सामूहिक अधिकार, व्यक्तिगत अधिकार केवल व्यक्ति अपने लिए उपयोग करता है और सामूहिक अधिकार में पूरे समूह के लिए अधिकारों का उपयोग करता है। भारत में कहीं भी अधिकार शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है बल्कि मानवता का प्रयोग किया गया है क्योंकि ये अधिकारो से बढकर मानवता के लिए आवश्यक है।

इस कार्यक्रम के अन्त में समस्त अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए डॉ० नलनीश चन्द्र सिंह विभागाध्यक्ष विधि संकाय मदरहुड विश्वविद्यालय रूडकी ने कहा कि इस अतिथि व्याख्यान के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त हुआ वो विद्यार्थियो के जीवन में हमेशा काम आएगा।

इस कार्यक्रम का संचालन, सहायक आचार्या सुश्री श्रीतु आनन्द ने किया। इस अवसर पर डॉ० हरि चरण सिंह (सह आचार्य), डॉ० अखिलेश यादव (सहायक आचार्य), डॉ० सन्दीप कुमार (सहायक आचार्य), डॉ० श्वेता श्रीवास्तव (सहायक आचार्या), डॉ० जूली गर्ग (सहायक आचार्या), श्रीमति रेनू तोमर (सहायक आचार्य), श्रीमति व्यजंना सैनीश्री विवेक कुमार (सहायक आचार्य), श्री सतीश कुमार (सहायक आचार्य), सुश्री अन्निदिता चटर्जी (सहायक आचार्य), सुश्री आशी श्रीवास्तव (सहायक आचार्य), श्री अनिल कुमार (सहायक आचार्य) ने सहभागिता प्रदान की। इस कार्यक्रम में सभी छात्र-छात्रओं एवं अन्य विद्यार्थी ने भाग लिया।