भारत की ज्ञान परंपरा का का आधुनिक शिक्षा में समावेश हो रहा है। शिक्षा के सभी आयामों के मूल में भारत के शोध और प्राचीन परंपरा का संदर्भ आज के विद्यार्थियों को बताना बहुत आवश्यक है। चाहे गणित विषय हो, ज्योतिष हो, भौतिक शास्त्र हो , वायु विज्ञान की बात हो, चिकित्सा , योग, अंतरिक्ष विज्ञान आदि हर क्षेत्र में

भारत की ज्ञान परंपरा का अध्ययन अति आवश्यक है। शिक्षकों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवी समाज का दायित्व है कि वह व्यक्तिगत स्तर पर भारत की ज्ञान परंपरा का अध्ययन कर उसे विभिन्न माध्यमों से समाज के सामने ले जाए। इसका एक रूप पुस्तक भी हो सकती है । हम जानकारी को सोशल मीडिया के माध्यम से साझा कर सकते हैं । आज की युवा पीढ़ी को यदि हम आधुनिक विज्ञान के पीछे भारत की ज्ञान परंपरा के मजबूत संदर्भ नहीं बताएंगे तो कहीं ना कहीं भविष्य हमीं से प्रश्न पूछेगा । यह हम सब का दायित्व है कि भावी पीढ़ी से भारत की विराट और महान ज्ञान परंपरा के साथ उन्हीं की भाषा में बात करते हुए जोड़ें। आज एक संवाद कार्यक्रम में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय टोली सदस्य डॉक्टर सदानंद दामोदर सप्रे जी ने यह बातें कही। तारावती महाविद्यालय के संचालक श्री रमेश शर्मा जी ने अपने आवास पर आहूत बैठक में सभी का स्वागत किया । बैठक का संचालन डॉ राजकुमार उपाध्याय ने किया । बैठक में डॉक्टर संतोष कुमार शर्मा, डॉ पंकज शर्मा डॉ राजेश चंद्र पालीवाल, डॉ तीर्थ प्रकाश, डॉ बी एल अग्रवाल, अनिल अमरोही, सुगंध जैन, श्रद्धा हिंदू ,सतीश शर्मा, अरुण शर्मा, राम शंकर सिंह, मनीष श्रीवास्तव, अर्जुन गुप्ता, जगपाल उपाध्याय, डॉ प्रवीण रोड योगी, नरेंद्र आहूजा, बीएल अग्रवाल जी , डॉ सुरजीत सिंह और अनुपमा गुप्ता उपस्थित रहे। बैठक में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक भगवती जी भाई साहब और भृगु जी की विशेष उपस्थिति रही । डॉ पंकज शर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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